
ahir alha udal jati kya thi. ahir alha udal story in hindihistory ahir alha udal in hindi Alha Rudal Ki Etihastikta
ahir alha udal jati kya thi: मै इस लेख लिखने से पहले बता देना चाहता हूँ , मैंने किसी भी जाति आधारिक विषय पर लेख नहीं लिखता हूँ। लेकिन आज सुबह से वीर योद्धा अल्हा उदल विषय में बहुत अधिक चर्चा हो रही है। हर कोई इन्हे अपने जाति के बता रहे है। आज मैंने आपके सामने सबुतो के साथ ये बताए गे वीर योद्धा अल्हा उदल की जाति क्या है??? वैसे वीर योद्धाओ की कोई जाति नहीं होती है। ये भारतवर्ष है यहाँ कई वीरो ने जन्म लिया। खैर आज हम Archaeological Survey of India (ASI) रिपोर्ट को सबसे बड़ा सबुत माने गे। जिनके रिपोर्ट पर भी राम मंदिर का निर्माण हुआ था।
Story of Alha Udal: जाने पृथ्वीराज जैसे वीर को ‘प्राणदान’ देने वाला योद्धा आल्हा की कहानी
उस पहले हम अन्य सबुतो पेश करते है। जैसे कि
पहला #Proof – भाव पुराण में कहा गया है कि न केवल आल्हा और उदल की माताएँ हैं, जो अहीर हैं, बल्कि बक्सर के उनके पिता भी अहीर (ग्वाल) ही हैं।
इसका जिक्र Alt hiltebeite columbia
professor of religion, history &
human science at George Wash
ington DC, USA, FOH ancient
Sanskrit epics महाभारत और रामायण
में मजबूत पकड़ मानी जाती है। इन्होंने
अपनी किताब में इस बात की पुष्टि की है।
दुसरा #Proof – आल्हा-ऊदल के वंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों का ये कहना है कि उनके पिता दसराज सिंह ‘वनाफर’ कुल के अहीर थे। बाकी साक्ष्य निचे दिए गये फोटो देख सकते है।
तीसरा #Proof – अब हम आपके सामने e book प्रस्तुत कर रहे है। जिनके लेखक K.S. Singh India’s communities Communities, Segments, Synonyms, Su , Page 1293
From inside the book
Groups/ subgroups: Chouria, Jharia, Kanojia, Kasaria, Krishna, Leria,
1 page matching majraut madhu int Magdha (Assam)
Dagaghosh, Gope Ghosh, Kishnaut, Majraut (Tripura)
Gming Clouri Jhia Kareja Kauria Kida Subcastes: Abhir, Ahir, Bagre, Ballabh (in Bengal). Banpar, Barendra
Madhan Deportes Gope Glash. Kishau. Marautal (Pallal), Bargowar, Bhoga (Sada Goala). Bhogta (in Chota Nagpur).
Sa Abbi Ahir, Regre, Ballabh in legal. Ranper. I
चौथा #Proof – अब जो हम सबुत आपको देने जा रहे है ये एक ब्रह्मास्त्र है जो कि अबतक सबसे बड़ा और सबसे सटीक सबुत हम कह सकते है। क्योंकि यह सबुत है Archaeological Survey of India (ASI) का और इसे कोई छोटा मोटा सबुत ना समझिए। यह वही Archaeological Survey of India (ASI) जिसके आधार पर राम मंदिर अयोध्या में बन जाता है। अगर ये (ASI) रिपोर्ट से राम मंदिर बन जाता है , तो ये सत्यापित क्यों नहीं हो सकती है कि वीर योद्धा अल्हा उदल अहीर थे। (ASI) रिपोर्ट बनाता है तो पुरे सबुत के आधार और उस स्थान के लोगो पुछकर। (ASI) रिपोर्ट से बड़ा कोई और दुसरा हो नहीं सकता क्योंकि ये सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होता है। अगर किसी के पास इस सबुत का तोड़ हो। जरूर मुझे दे।
ASI Report को नीचे पढ़ सकते है और download कर सकते है।
ASI Report download के लिए क्लिक करे
अभी लेख यही समाप्त नहीं हुई है बल्कि कि कई महत्वपूर्ण कहानी बाकी है।
मध्यप्रदेश में यदुवंशी अहीरों की दो शाखा बहुत प्रसिद्ध है “हवेलिया अहीर” और “वनाफर अहीर” अर्थात वनों में रहने के कारण वनाफ़र कहलाए।
दसराज सिंह का विवाह उस समय ग्वालियर के हैहयवंश शाखा के यदुवंशी अहीर राजा दलपत सिंह की राजपुत्री देवल से हुआ था।
मान्यता के मुताबिक एक बार राजकुमारी देवल ने एक सिंह को अपने शमशीर के एक ही वार से ध्वस्त कर दिया था। तथा इस घटना को देख कर दसराज बहुत प्रभावित हुए। दसराज सिंह राजकुमारी देवल से विवाह प्रस्ताव लेकर राजा दलपत सिंह के पास पहुँचे। दलपत सिंह ने विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
वनाफ़र अहीरों और हैहय अहीरों में आपस में विवाह की परंपरा पुरानी थी एवं दसराज सिंह की माता भी हैहय शाखा की अहीर थीं। आपको ये बता दसराज सिंह और राजकुमारी देवल को माँ शारदा की कृपा से आल्हा ऊदल के रूप में दो महावीर पुत्रों की प्राप्ति हुई। माता देवल और दसराज सिंह के इन पुत्रों का नाम आल्हा और उदल था।
आपको से बता दे कि पृथ्वीराज चौहान और आल्हा ऊदल के बीच 52 बार युद्ध हुआ और हर बार पृथ्वीराज की सेना को भारी क्षति हुई और मूँह की खानी पड़ी। बुंदेली इतिहास में आल्हा ऊदल का नाम बड़े ही आदर भाव से लिया जाता है। बुंदेली कवियों ने आल्हा का गीत भी बनाया है। जो सावन के महीने में बुंदेलखंड के हर गांव गली में गाया जाता है।
माहोबा में स्थित माँ शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध की साक्षी है।
पृथ्वीराज ने बुन्देलखंड को जीतने के उद्देश्य से ग्यारहवी सदी के बुन्देलखंड के तत्कालीन चन्देल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) पर चढाई की थी एवं राजा परमाल को परास्त करने के लिए उनकी राजकुमारी बेला के अपहरण की नीति बनाई।
कीरत सागर के मैदान में महोबा व दिल्ली की सेना के बीच युद्ध हुआ। इसमें पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई और इसी रण में आल्हा ऊदल ने पृथ्वीराज के प्राण जीवनदान में दिए।
मां शारदा के परम उपासक आल्हा को वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पायेगा। वास्तव भी में भी
हुआ भी वैसा ही।
आल्हा ऊदल और पृथवीराज के बीच आखिरी बार युद्ध बैरागढ़ में हुआ था।
बुंदेलखंड को जीतने के लिए पृथ्वीराज ने आखिरी बार चढ़ाई किया। वीर योद्धा आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान से युद्ध के लिए बैरागढ़ में ही डेरा डाल रखा था। यहीं वह पूजा अर्चना करने आए तो मां शारदा ने साक्षात दर्शन देकर उन्हें युद्ध के लिए सांग दी। काफी खून खराबे के बाद पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा। वीर ऊदल इस रण में वीरगति को प्राप्त हुए।
युद्ध से खिन्न होकर आल्हा ने मंदिर पर सांग चढ़ाकर उसकी नोक टेढ़ी कर वैराग्य धारण कर लिया। मान्यता है कि मां ने आल्हा को अमर होने का वरदान दिया था। लोगों की माने तो आज भी कपाट बंद होने के बावजूद कोई मूर्ति की पूजा कर जाता है।
ये थी पुरी कहानी … आशा करते है आपको पंसद आई होगी। ये कहानी हमारे website Shashiblog.in पर उपलब्ध है। जहाँ पर आप 50 से भी ज्यादा भाषा में पढ़ सकते है।
ये कहानी निष्पक्ष (neutral) होकर सच लिखने की प्रयास किया है। वैसे वीरो की जाति नहीं होती बल्कि युद्ध मैदान उनका शौर्य बोलता है। आपको बता दे कि इतिहास की कई सच कड़वा होता उन्हे हमे लिखना पड़ता है। अंत मैंने यही कहना चाहता है कि जब अगली बार जयंती मनाए तो हम इस प्रकार की जाति आधार लड़ने स्थान पर उस वीर अहीर आल्हा जी महान योद्धा तौर याद करेंगे।