पृथ्वीराज संयोगिता की अमर प्रेम कथा आखिर जाने पृथ्वीराज और जयचंद रिश्ता कैसा था...
अभी पढ़ रहें है shashiblog.in आज के आर्टिकल में पृथ्वीराज चौहान से अपनी निजी द्वेष का प्रतिशोध लेने के लिए मोहम्मद गौरी ने किया राष्ट्र के साथ गद्दारी जाने वजह।।
भारतीय इतिहास में कई ऐसे नाम हुए जो अपने कुछ कार्यों वजह इतिहास( history) में काले शब्दो से लिखे गए, राजा जयचन्द एक ऐसा ही नाम था।
उन्हें राष्ट्र का गद्दार कहा जाता है। बताया जाता है कि वह पृथ्वीराज चौहान से अपनी निजी द्वेष का प्रतिशोध लेने के लिए मोहम्मद गौरी से जा मिले थे।
जयचन्द की बेटी बनी टकराव का वजह
आप जानते ही कि राजा पृथ्वीराज चौहान ने अन्य राजपूत राजाओं के साथ मिलकर साल 1191 में मोहम्मद गौरी को तेहरान की प्रथम युद्ध परास्त कर दिया जिसके उपरांत इस पराजय को मोहम्मद गौरी पचा नहीं सका और उसने पृथ्वीराज से इसका प्रतिशोध लेने की तय कर लिया परिणाम स्वरूप इस दौरान पृथ्वीराज चौहान को राजा जयचन्द की बेटी संयोगिता से प्रेम हो गया।जैसे ही संयोगिता ने अपनी वरमाला पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति को पहनानी चाही वैसे ही अचानक मूर्ति की स्थान पर स्वयं पृथ्वीराज चौहान आ खड़े हुए और माला उनके गले में चली गयी। अपनी पुत्री की इस हरकत से क्षुब्ध जयचंद, संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़ा, परंतु इससे पहले कि जयचंद कुछ कर पाता, पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को लेकर भाग गये, परंतु उनका प्रेम उनके लिए सबसे बड़ी भुल बन गया। जिसका परिणाम स्वरूप जयचंद ने उसके साथ किया समझौता तोड़ दिया और उनके विरुद्ध युद्ध शुरूआत कर दी।उसके परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज राजा जयचंद तथा पृथ्वीराज चौहान युद्ध के मैदान कई बार आमने- सामने हुए,इन युद्धों में यकीनन पृथ्वीराज की विजय हुई। परंतु उसकी कीमत के तौर पर पृथ्वीराज के कई बहादुर सेनापति विरगति प्राप्त किया। यानी इन युद्धों में विजय उपरांत भी पृथ्वीराज राज को बहुत बड़ी कीमत चुकाने पड़ी।वहीं राजा की संयोगिता को इस तरह भगाकर विवाह करने की इस हरकत का प्रतिफल अन्य राजपूत राजाओं पर भी पड़ा और उन्होंने पृथ्वीराज से अपने सभी समझौते रद्द कर दिए।
अपमान का प्रतिशोध चाहता था जयचन्द
इधर संयोगिता और पृथ्वीराज खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे वही उधर पृथ्वीराज चौहान के हाथों युद्ध में पराजय के बाद राजा जयचंद प्रतिशोध की आग में झुलस रहा था और वह किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज से प्रतिशोध लेना चाहता था। प्रतिशोध की यही भावना जयचंद को मोहम्मद गौरी को एक कर दिया। वहीं जयचंद मोहम्मद गोरी के साथ मिलकर पृथ्वीराज को मारने की योजना बनाने लगा। पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 16 बार परास्त किया था। परंतु प्रत्येक
बार उसे जीवित छोड़ दिया। शायद पृथ्वीराज सबसे बड़ी गलती यही मोहम्मद गोरी को 16 बार परास्त के उपरांत भी जीवित छोड़ दिया।
जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने का न्यौता दिया और साथ युद्ध के सैन्य सहायता देने का वचन दिया। जयचंद की बात मानकर मोहम्मद गौरी ने एक बार फिर से भारत की और कूच कर दी। जब पृथ्वीराज को इस आक्रमण का मालूम चला तो उसने अन्य राजाओं से सहायता मांगी परंतु राजा जयचंद के कहने पर किसी ने पृथ्वीराज की सहायता नहीं की।
परंतु वह सब राजा के विरुद्ध यानी गौरी के पक्ष में खड़े हो गए, लेकिन उसके बावजूद पृथ्वीराज के पास 3 लाख सैनिकों की विशाल सेना, वही इसके मुकाबले गौरी के पास केवल 1 लाख 20 हजार सैनिक थे, परिणाम स्वरूप साल 1192 में तराइन का युद्ध हुआ।
इस युद्ध की आरंभ में तो भारतीय सेना का पलड़ा भारी रहा, मगर कुछ दिनो के उपरांत मोहम्मद गौरी की घुड़सवार टुकड़ी ने अपनी बढ़त बना ली। उन्होंने पृथ्वीराज की सेना के हाथियों को तीरों से इस कदर घायल कर दिया कि वे बोखला कर यहां-वहां भागने लगे।
पृथ्वीराज चौहान पर अमानवीय यातनाएं
उसका परिणाम स्वरूप यह हुआ कि उन्होंने अपने ही सैंकड़ो सैनिकों को कूचल दिया। अंत: पृथ्वीराज की पराजय हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया।बंदी बनाने उपरांत मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को गर्म सलाखों से जला दिया और कई अमानवीय यातनाएं भी दी गयीं।
पृथ्वीराज के उपरांत आई जयचंद की बारी
पृथ्वीराज की पराजय के उपरांत भारत में मुस्लिम शासन की बुनियाद रख दी गई। इस बीच कुतुबद्दीन ऐबक को भारत का गवर्नर नियुक्त कर दिया गया। पृथ्वीराज की पराजय से संतुष्ट जयचंद अब उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राजा बन गया था। परंतु जयचंद की प्रसन्नता अधिक समय तक बरकरार नहीं रही। क्योंकि खैबर के रास्ते मोहम्मद गौरी एक बार फिर भारत आ गया था।इस बीच मोहम्मद गौरी ने कुतुबद्दीन ऐबक के साथ मिलकर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया।उनका सामना करने के लिए जयचंद खुद सेना का नेतृत्व करने के लिए युद्ध के मैदान में आए इस युद्ध में तीर लगने से राजा जयचंद की मौत हो गई और इस तरह कन्नौज राज्य भी मोहम्मद गौरी हो गया, अर्थात जयचंद प्रतिशोध भावना जिस मोहम्मद गौरी साथ दिया वही मोहम्मद गौरी जयचन्द मृत्यु वजह बनी।
पृथ्वीराज चौहान अंत: मारने निर्णय कर लिया
अंत: मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को मारने का निर्णय कर लिया। उससे पहले कि मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज को मार डालता। उस उपरांत हि पृथ्वीराज चौहान के नजदीकी मित्र और राजकवि चंदबरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज की एक खूबी बतायी, दरअसल पृथ्वीराज चौहान, शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर थे। वह आवाज सुन कर तीर चला सकते थे। यह बात सुन मोहम्मद गोरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया। इसके साथ ही भरी महफिल में चंदबरदाई ने एक दोहे द्वारा पृथ्वीराज को मोहम्मद गोरी के बैठने के स्थान का संकेत दिया जो इस प्रकार है
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चुको चौहान
पृथ्वीराज चंदबरदाई के इशारे को समझ गये और उसके मुताबिक पर अचूक शब्दभेदी बाण से मोहम्मद
गोरी को मौत घाट उतार दिया।साथ ही शत्रु के हाथों अपनी दुर्गति होने से बचने के लिए चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे की जान ले ली़ जब संयोगिता को इस बात की सूचना मिली, तो उन्होंने पृथ्वीराज के वियोग में सती होकर अपनी जान दे डाली और इस तरह पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कथा (love story) इतिहास (history ) में सदा के लिए अमर हो गयी गयी।
इतिहासकारों की मुताबिक पृथ्वीराज चौहान की विशाल सेना में तीन लाख सिपाही और तीन सौ गजराज थे। पृथ्वीराज ने कई युद्ध विजय प्राप्त करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। उन्होंने चंदेलों, दिेलखंड, महोबा समेत कई छोटे-छोटे राज्य अर्जित किये थे। पृथ्वीराज चौहान के जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का वर्णन चंदबरदाई द्वारा लिखित ग्रंथ
पृथ्वीराज रासो में है। पृथ्वीराज चौहान और उनकी प्रेमिका संयोगिता की प्रेमकथा आज भी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों के जरिये प्रदर्शित की जाती है।
इतिहास समझा जाए तो जयचंद ने अगर मोहम्मद गौरी सहायता नही करता और उस समय तमान राजपुत राजाओ ने पृथ्वीराज चौहान सहायता कि होती है तो वास्तविकता यह होती कि भारत पर कभी मुस्लिम शासक राज ही नही कर पाते है। जयचंद की एक गलती ने भारत को मुगलो ने गुलाम बना दिया।
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