Gyani Chor ki Story in Hindi :जो भी अंदर गया कभी वापस लौटकर नहीं आया |
Gyani Chor ki Story in Hindi :नमस्कार दोस्तों आप सभी स्वागत है हमारे ब्लॉग पर, आप अभी पढ़ रहें है shashiblog.in आज के आर्टिकल में ज्ञानी चोर की बावड़ी के बारे बताईए गे।
एक समय था जब भारत को सोने की चिड़िया बोला जाता था। भारत के राजा-महाराजाओं के पास बेशुमार धन-दौलत थी।
एक समय था जब भारत को सोने की चिड़िया बोला जाता था। भारत के राजा-महाराजाओं के पास बेशुमार धन-दौलत थी।
लेकिन जैसे-जैसे वक्त बदला अंग्रेजों ने सोने की चिड़ियां कहे जाने वाले भारत को अपना गुलाम बना लिया और इस राष्ट्र की सारी धन-दौलत को लूटकर ले गये। लेकिन कहते हैं आज भी हमारे भारत में कई ऐसी जगहें मौजूद है जहां आज की तारिख में भी अरबों की धन-दौलत विश्व से छुपी हुई है। आज आपको ऐसी ही एक स्थान के बारे में बताने जा रहे है।
इस स्थान का नाम है ज्ञानी चोर की बावड़ी’ जो कि हरियाणा के रोहतक में मौजूदा है। यूं तो इस बावड़ी का निर्माण मुगल काल में हुआ था। लेकिन इसका नाम ज्ञानी चोर की बावड़ी अलग से ही पड़ा। इस गुफा की खासियत है जाल की तरह बुनी सुरंगे जो कि इस बावड़ी में मौजूद है।
बावड़ी में है सुरंगों का जाल
बावड़ी में लगे फारसी भाषा के एक अभिलेख के मुताबिक इस स्वर्ग के झरने का निर्माण उस वक्त के मुगल राजा शाहजहां के सूबेदार सैद्यू कलाल ने 1658-59 ईसवी में करवाया था। इसमें एक कुआं है जिस पर पहुंचने के लिए 101 सीढिय़ां उतरनी पड़ती हैं। इसमें कई कमरे भी हैं, जो कि उस जमाने में राहगीरों के आराम के लिए बनवाए गए थे। सरकार द्वारा उचित देखभाल न किए जाने के वजह से यह बावड़ी जर्जर हो रही है। इसके बुर्ज व मंडेर गिर चुके हैं। कुएं के अंदर मौजूद पानी काला पड़ चुका है।
कैसे पड़ा इसका नाम ज्ञानी चोर की बावड़ी-
इस कुएं से जुड़ी एक कहानी है, बताया जाता है कि मुगलकाल में एक चोर था जो कि रॉबिनहुड की तर्ज पर रात को अमीरों और लालची लोगों से पैसा लुटता था और दिन में वह उसी पैसों से गरीबों की मदद करता था। चोरी करने के बाद वह सारा माल इस बावड़ी में आकर छुपाता था। कहते हैं वो अरबों का धन आज भी इसी बावड़ी में छुपा हुआ है।
इतिहासकार नहीं माने तो ज्ञानी चोर को जिक्र इतिहास में कहीं नहीं है।
लेकिन इतिहासकारों की माने हालांकि बावड़ी चोर का जिक्र इतिहास में कहीं नहीं है। अतिंम खजाना तो दूर की बात है। इतिहासकार डॉ.अमर सिंह ने बताया कि पुराने जमाने में पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए बावडिय़ां बनाई जाती थीं। लोगों का कहना है कि इतिहासकारों को चाहिए कि बावड़ी से जुड़ी लोकमान्यताओं को ध्यान में रखकर अपनी खोजबीन फिर नए सिरे से प्रारंभ करें ताकि इस बावड़ी की तमाम सच्चाई जमाने के सामने आ सके। कहा ये भी जाता है कि बावड़ी पुरातत्व विभाग के अधीन है अगर 352 सालों से कुदरत के थपेड़ों ने इसे कमजोर कर दिया है। जिस वजह इसकी एक दीवार गिर गई है और दूसरी कब गिर जाए इसका मालूम नहीं। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार प्रशासन से इसकी मरम्मत करवाने की गुहार लगा चुके हैं।
लेकिन जब भी खोज के लिए जो भी इस गुफा में गया कभी वापस लौटकर नहीं आया।
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