क्या सिंधु घाटी सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता महाभारत काल में मौजूद था और सिंधु घाटी सभ्यता की पूरी जानकारी
सिंधु घाटी सभ्यता
(3300-1700 ई.पू.) के बीच दुनिया के महत्वपूर्ण नदी सभ्यताओं में से एक थी | हड़प्पा
और सिंधु घाटी सरस्वती सभ्यता के नाम से जाना जाता है | विकास
सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ. मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी
और हड़प्पा इसके प्रमुख केंद्र थे|
सिंधु घाटी तलाश (Search)
यबहादुर दयाराम साहनी ने की थी|
सिंधु घाटी के सभ्यता पश्चिमी पुरास्थल सुतकांगेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी
पुरास्थल आलमगीर ( मेरठ),
उत्तरी पुरास्थल मांदा ( अखनूर, जम्मू कश्मीर) और दक्षिणी पुरास्थल दाइमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र)
हैं|
सिंधु सभ्यता सैंधवकालीन
नगरीय सभ्यता थी में भी नगरी सभ्यता थी|
सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6
को ही बड़े नगरों की संज्ञा दी गई है. ये हैं: मोहनजोदड़ों, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलवीरा, राखीगढ़
और कालीबंगन
अधिकांश हड़प्पा स्थलों को गुजरात से खोजा गया है|
लोथल और सुतकोटड़ा सिंधु सभ्यता के बंदरगाह थे।
जूते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का सबूत काली बंधन में प्राप्त हुआ है|
आईटी खड़कपुर के और भारतीय प्रांत विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु
घाटी सभ्यता की को लेकर नए तथ्य सामने रखे विज्ञानको के मुताबिक 55000 साल नहीं बल्कि 8000 साल पुरानी है रिसर्च
के मुताबिक हड़प्पा सभ्यता से 1000 वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले
हैं|
सिंधु घाटी सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता महाभारत काल में मौजूद था
हालाँकि,
यह निश्चित था कि महाभारत काल में सिंधु सभ्यता का अस्तित्व था।
महाभारत में, इस जगह को सिंधु देश कहा जाता था। इस सिंधु देश का राजा जयद्रथ था।
जयद्रथ का विवाह धृतराष्ट्र की पुत्री दुःश्शाला से हुआ था। जयद्रथ ने महाभारत के
युद्ध में कौरवों का समर्थन किया और चक्रव्यूह के दौरान अभिमन्यु की मौत में एक
प्रमुख भूमिका निभाई।
सिंधु देश का प्राचीन भारत के सिंधु सभ्यता से है यह जगह केवल अपनी
कला सहित के लिए विख्यात था बल्कि वाणी व्यापार में भी मौजूदा पाकिस्तान के सिंध
प्रांत को प्राचीन काल के सिंधु देश कहा जाता था,रामचंद्रजी द्वारा भरत को दिए
जाने का उल्लेख है।युनान के लेखकों ने अलक्षेंद्र के भारत-आकमण के संबंध में
सिंधु-देश के नगरों का उल्लेख किया है। मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा सिंधु देश के दो
बड़े नगर थे।
सिंधु घाटी सभ्यता की अंत की पीछे की वजह
एक नए रिसर्च में दावा किया यह करीब 4000 साल पुरानी सिंधु घाटी की
सभ्यता के अंत के पीछे का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन (Climate change) हो सकता है|इसमें
रिसर्च में हिंदू बांटा के पवित्र नदी सरस्वती को लेकर लंबे समय से जारी डिबेट को
भी सुलझाने जाने का दावा किया गया है|
इस रिसर्च को पुरातत्व विभाग (Archeology
department)की भू विभाग की तकनीकों से जुड़े आंकड़े में भी पेश किए गए हैं इसमें
कहा गया कि मानसून बारिश में आई प्रवाह को कमजोर करने का कारण बनी जिससे हड़प्पा
संस्कृति का विनास पतन की ओर बढ़ गया महत्वपूर्ण भूमिका निभाई की अपनी कृषि
कार्यों को पूरी के प्रभाव पर निर्भर थी|
न्होंने बताया कि हमारे रिसर्च में संकेत मिलते की मानसून बारिश कमी
आने के से नदी का प्रभाव कमजोर पड़ा इससे हड़प्पा संस्कृति का विकास पटन दोनों
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वर्ष 2003
से 2008
के बीच के यह नए शोध में भी यह कहा रिसर्च में यह भी दावा किया गया
कि सरस्वती नदी हिमालय ग्लेशियरों से पानी नहीं आता जैसा कि माना जाता है रिसर्च
में शोधकर्ताओं ने कहा कि सरस्वती नदी में पानी मानसून की बारिश से जलवायु
परिवर्तन (Climate
change) के कारण पैदा स्थिति से यह खास मौसम में बहने वाली नदी बनकर रह गई।
सिंधु घाटी सभ्यता की खास बातें
जैसा कि आप जानते हैं इस समय ताकि लोग बहुत ही विकसित और नगर निर्माण
योजना भी नगर निर्माण योजना हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो ने दोनों नगरों में अपने दुर्गा
थे जहां पर शासक वर्ग का परिवार रहते है| जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था।
प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों
में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की
तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार
खंडों में विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिंधु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे
छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहां के स्मारक
इस बात के साक्ष्यहैं कि वहां के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे।
ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत देख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने
प्रतापी और प्रतिष्ठावान थे।
कारोबार
यहां लोगों ने पत्थर,
धातु की तराजू (हड्डी) का कारोबार किया। व्यापक क्षेत्र में बड़ी
संख्या में मुहरों (एसआरआई),
समान लिपि और मानक माप भार का प्रमाण है। वह पहिया से परिचित था और
शायद आज के एस (रथ) के समान एक वाहन का उपयोग करता थे। उन्होंने अफगानिस्तान और
ईरान (फारस) के साथ कारोबार किया। उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में एक व्यापारिक
समझौता किया जिससे उनके व्यापार में आसानी हुई। मेसोपोटामिया में कई हड़प्पा
मुहरों का पता चला है,
यह दर्शाता है कि उनका मेसोपोटामिया के साथ व्यापारिक संबंध भी था। मेलुहा
के साथ व्यापार के साक्ष्य मेसोपोटामियन रिकॉर्ड्स में पाए गए हैं, साथ
ही साथ दो मध्यवर्ती व्यापार केंद्रों - डालमैन और मैकॉन से भी। दिलमुन बहरीन को
शायद पिलास खाड़ी में पाया जा सकता है।
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