आज शाम से अगर आप ने टीवी पर न्यूज चैनल लगाया होगा। तो आपने बंगाल के राजनीति का भरपुर ड्रामा जरूर देखा होगा। ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) एक हादसे को अपने ऊपर हमले के तौर पेश कर रही है। वैसे बंगाल राजनीति में हिंसा कोई नई बात नहीं है। जिसकी शुरूआत कांग्रेस पार्टी ने किया था। उसके बाद 34 साल राज करने वाली वामपंथी पार्टियां ने भी इसी सांस्कृतिक आगे बढ़ाए है। अब TMC भी उसी तरह की हिंसा की राजनीति को अपानाया है। यू कहिए बंगाल के जनता ने शुरूआत से ही हिंसा आधारिक राजनीति देखा है। एक आंकड़े की बात करे तो साल 1977 से 2007 के बीच 28 हजार राजनीतिक हत्याएं बंगाल में हुईं। शायद इसी वजह से बंगाल की जनता खुलकर अपनी राजनीति राय नहीं रख पाती हैं। खैर हम आज के बंगाल से आई खबर पर वापस आते है।
राजनीति घटनाक्रम पर आते है। एक फेसबुक यूजर ने अपने फेसबुक वॉल में लिखा है। जिनका नाम सतीश चंद्र मिश्र जी (Satish Chandra Mishra) है। उन्होंने अपने फेसबुक वॉल में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का यह “खेला फिलहाल उल्टा पड़ गया है। संजय गांधी (Sanjay Gandhi)
1977 में लोकसभा का चुनाव अमेठी से लड़ रहे थे। केवल उत्तरप्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश के बाहुबलियों ने अपने हथियारबंद गुर्गों के साथ अमेठी में संजय गांधी के पक्ष में डेरा डाल रखा था। लेकिन जनता संजय गांधी से बहुत नाराज थी। संजय गांधी का प्रचार करने अमेठी पहुंचे विश्व प्रसिद्ध पहलवान दारा सिंह का जनता ने बहुत उग्र विरोध किया था और उनपर गलियों की इतनी और ऐसी बौछार कर दी थी कि दारा सिंह अपना आपा खो कर मंच से कूद कर जनता की तरफ डंडा लेकर दौड़ पड़े थे। पर भीड़ के आगे उनकी पहलवानी किसी काम नहीं आयी थी। भीड़ से बचाकर पुलिस उन्हें थाने ले गयी थी और सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें रात भर थाने में रख कर सुबह बम्बई भेज दिया था। यह वो दौर था जब दारा सिंह की लोकप्रियता देश में चरम पर थी। विशेषकर ग्रामीण भारत में उनको महामानव की तरह पूजा जाता था।। ऐसे विपरीत राजनीतिक हालातों में एक दिन चुनाव प्रचार कर लौट रहे संजय गांधी की कार पर गोलियां बरसा दी गईं थीं। यह चुनावी स्टंट जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए गया था। लेकिन नाराज जनता इसे भी समझ गई थी। उस चुनावी स्टंट का उस पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। संजय गांधी को 76 प्रतिशत के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा था।
आज उपरोक्त घटना की याद तब आयी जब अपनी गलती के कारण हुई एक दुर्घटना को अपने ऊपर हुआ जानलेवा हमला बता कर ड्रामा करते हुए ममता बनर्जी को देखा। दो ही तीन घण्टों में ममता बनर्जी के उस सफेद झूठ की धज्जियां उड़ गईं क्योंकि उस दुर्घटना के सैकड़ों प्रत्यक्षदर्शियों ने दर्जनों न्यूजचैनलों पर आकर सच बताना शुरू कर दिया। ममता का यह “खेला” फिलहाल उल्टा पड़ गया है।
1975 में कलकत्ते की एक सड़क पर 80 वर्ष के वृद्ध नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कार रोकने के बाद उनकी कार की छत और बोनट पर एक लड़की चिल्लाते नाचने कूदने लगी थी और अखबारों की सारी सुर्खियां बटोर ले गई थी। वो लड़की कोई और नहीं आज की ममता बनर्जी ही थी। अपनी उस उद्दंडता और अराजकता के साथ राजनीतिक यात्रा प्रारंभ करने वाली ममता बनर्जी शायद भूल गयी है कि वर्तमान संचार क्रांति के युग में ऐसे हथकंडों की ना ज्यादा उम्र होती है ना ज्यादा असर होता है।